Saturday 30 November 2013

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया 
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया 

कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के 
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया 

महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया 

तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना 
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया 

सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया 

कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में 
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया
- बशीर बद्र

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