Saturday, 30 November 2013

जाते जाते वो मुझे

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया 
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया 

उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी 
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया 

सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई 
और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया 

ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया 
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया
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जावेद अख़्तर

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