सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
बावज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है
मैं तिरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है
मुझमें रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है
बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती है
दिल मिरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है
ज़िंदगी तूने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीन
पाँव फैलाऊं तो दीवार से सर लगता है
-बशीर बद्र
बावज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है
मैं तिरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है
मुझमें रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है
बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती है
दिल मिरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है
ज़िंदगी तूने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीन
पाँव फैलाऊं तो दीवार से सर लगता है
-बशीर बद्र
No comments:
Post a Comment