मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं
हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं
ये कभी अपनी जफ़ा पर न हुआ शर्मिन्दा
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं
उम्र भर जिनकी वफ़ाओं पे भरोसा कीजे
वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं
-बशीर बद्र
हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं
हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं
ये कभी अपनी जफ़ा पर न हुआ शर्मिन्दा
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं
उम्र भर जिनकी वफ़ाओं पे भरोसा कीजे
वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं
-बशीर बद्र
No comments:
Post a Comment